अजनबी
- Nupur Mannu
- Jun 26, 2020
- 1 min read
आज फुरसत से जो मिले हो तुम,
थोड़े कम अजनबी लगे हो तुम |
खुद को देखा है जब से श्कल मे तुम्हारी,
ना जाने क्यूँ? थोड़े कम गलत लगे हो तुम |
चेहरे पे झुरियाँ सी क्यूँ हैं तुम्हारी?
परछाईयाँ धुंधली सी क्यूँ है तुम्हारी?
कुछ सोंचते हो, जो माथे पे लकीरें सी हैं?
रो रहे हो, या आखें हमेशा से नम हैं तुम्हारी?
सो जाओ अब तो, कि पलकें तक थक चुकी हैं,
तनहाई में न जाने कब से जगे हो तुम |
आज फुरसत से जो मिले हो तुम,
थोड़े कम अजनबी लगे हो तुम ||
Love your poem.